आओ हँस लें

आओ हँस लें

Sunday

अच्छे दिन .......आ गए


चुनाव हुये पूरे
हम वही रह गए अधूरे
गरीबी कम होगी
वोट दिया था
क्या पता
आखिरी बार
उधार का घी पिया था
आलू
बाबा मोल
टमाटर
ताई मोल
और प्याज़ का पूंछों मत हाल
न जाने कहाँ हो गया
गोल
हमारी झोपड़ी के ऊपर से
कल रात गुजरी
बुलेट ट्रेन
रात मे ही गूंज उठी किलकारी
आम्मा बोली
ये और आई महगाई की मारी
सुबह हुयी
खुदने लगा
पटरी उस पार का इलाका
हमारी उम्मीद जगी
जब घर मे ही बनने लगा
सिंगापूर सा हाईटेक सिटी
हमने सोचा
अब तो दिन बहुर जाएँगे
हम भी बीस मंजिल तक
सब्जी बेंच आएंगे
उस दिन हमे शिक्षा का महत्व समझ आया
जब घसीटे ने बताया
सरकार ला रही है  ऐफ डी आई
हमारी झोपड़ियों पर भी
ऐफ डी आई का
चल रहा है विचार
अगले वर्ष तक विदेशी निवेश होगा
झोपड़ियों मे भी
मल्टीस्टोरी का प्रवेश होगा.
हरिया .....आज भंग लाओ
और निकालो कपड़े नये
क्योंकी
अच्छी दिन ..........
अच्छे दिन .......आ गए .




3 comments:

  1. मल्टीस्टोरी हर खेत पर... अच्छे दिन आ रहे हैं... बढ़िया व्यंग, बधाई.

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  2. महेश जी बहुत ही अच्छी व् वयंगात्मक रचना लिखी है आपने। सच में अच्छे दिन आ गए आपकी इस रचना से। आप ऐसी ही रचनाओं को शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं। वहां पर भी यही है अच्छे दिन ! जैसी रचनाएँ पढ़ व् लिख सकते हैं ।

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